भारत में माल ढोने वाले ट्रक बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। डीज़ल ट्रक सिर्फ 3 प्रतिशत वाहनों का हिस्सा हैं, फिर भी ये देश के कुल प्रदूषण का लगभग 8 प्रतिशत योगदान करते हैं। अगर यही स्थिति रही, तो 2050 तक यह बढ़कर 15 प्रतिशत हो सकती है।
सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं। ये योजनाएँ इलेक्ट्रिक वाहन, जैव ईंधन और हाइड्रोजन ट्रकों को प्रोत्साहन देती हैं। फेम और प्रधानमंत्री ई-ड्राइव जैसी योजनाओं के ज़रिए सरकार व्यवसाय वाहनों में प्रदूषण और ईंधन की खपत को कम करना चाहती है।
भारत में अलग-अलग ईंधनों को आजमाया जा रहा है। हर विकल्प की अपनी खासियत है, लेकिन साथ ही कुछ कठिनाइयाँ भी हैं।
ट्रक बेचने और खरीदने में सबसे बड़ा कारक पैसा होता है। मुनाफा बहुत कम होता है। मालिक कुल खर्च को देखते हैं: जैसे ईंधन, मरम्मत, ट्रक का चालू रहना और दोबारा बेचने की कीमत।
इलेक्ट्रिक ट्रक की शुरुआती कीमत ज़्यादा होती है, लेकिन चलाने का खर्च कम होता है। अगर ट्रक रोज़ाना 320 किलोमीटर से ज्यादा चले, तो वह पैसा बचा सकता है। रुकावटें कम हों तो बचत बढ़ती है। लेकिन देरी से नुकसान होता है। ड्राइवर की कमी भी घाटे का कारण बनती है। इसलिए ट्रक का ज़्यादा से ज़्यादा चलना जरूरी है।
इसका हल है ट्रकों का सही इस्तेमाल। अगर लोडिंग में देरी पर जुर्माना लगे तो ट्रक ज़्यादा चलेगा। जितनी ज़्यादा दूरी तय होगी, उतनी ज़्यादा बचत होगी।
भारत अभी भी इलेक्ट्रिक वाहन के बहुत से हिस्से बाहर से मंगाता है, जैसे मोटर, कंट्रोलर और बैटरी सिस्टम। अगर इन्हें भारत में बनाया जाए, तो लागत कम होगी। साथ ही, भारत की गर्मी के हिसाब से बेहतर तकनीक भी बन सकेगी, जिससे बैटरी की सुरक्षा और जीवन बढ़ेगा।
इलेक्ट्रिक ट्रकों को चार्जिंग स्टेशन चाहिए। राजमार्गों पर तेज़ चार्जिंग स्टेशन होने चाहिए। इससे ट्रकों को कम रुकना पड़ेगा और ज़्यादा समय चल पाएँगे। इससे कुल खर्च कम रहेगा। बैटरी बदलने या ऊपर से बिजली की तार लगाने जैसे विकल्प हैं, लेकिन ये बहुत महंगे हैं। अभी के लिए तेज़ चार्जिंग ही सबसे उचित विकल्प है।
ट्रक खरीदने वाले केवल मशीन नहीं, पूरी सुविधा चाहते हैं। बनाने वालों को मार्गदर्शन देना होगा। उन्हें रास्तों के हिसाब से ट्रक सुझाने होंगे, चार्जिंग सुविधा देनी होगी और प्रदर्शन में सहायता करनी होगी। कुछ ग्राहक सस्ती कीमत चाहते हैं, कुछ ताकतवर ट्रक, तो कुछ नई तकनीक में रुचि रखते हैं। ये समझना जरूरी है ताकि सही ट्रक, सही ग्राहक को दिया जा सके।
भारत माल ढुलाई में प्रदूषण को कम कर सकता है। शून्य उत्सर्जन वाले ट्रक इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। कुछ मार्गों पर डीज़ल ट्रक बने रहेंगे, लेकिन इलेक्ट्रिक, जैव ईंधन और हाइड्रोजन वाले व्यवसाय ट्रकों की संख्या ज़रूर बढ़ेगी। अगर नीति मजबूत हो, योजना समझदारी से बने और स्थानीय समर्थन हो, तो भारत अपने माल परिवहन क्षेत्र को एक स्वच्छ भविष्य की ओर ले जा सकता है।
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