अशोक लेलैंड व्यवसाय वाहनों का सबसे भरोसेमंद नाम है और अब कंपनी अपने इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) को सस्ता और आयात पर कम निर्भर बनाने पर ध्यान दे रही है। चूँकि बैटरी किसी ईवी की कुल लागत का लगभग 40–50% हिस्सा होती है, इसलिए कंपनी ने तय किया है कि इन्हें बाहर से मंगवाने की बजाय भारत में ही तैयार किया जाए।
आज की तारीख में ज़्यादातर इलेक्ट्रिक ट्रक के पुर्ज़े भारत से बाहर से आते हैं। दरअसल, करीब 65% इलेक्ट्रिक ट्रक आयात पर आधारित है। इससे पूरा उद्योग विदेशी सप्लाई चेन पर निर्भर रहता है, जो महंगा भी है और अस्थिर भी।
इसी समस्या को हल करने के लिए अशोक लेलैंड ने चीन की सीएएलबी ग्रुप से साझेदारी की है। दोनों मिलकर अगले 7–10 सालों में करीब ₹5,000 करोड़ का निवेश करेंगे। शुरुआत बैटरी पैक असेंबली से होगी और आगे चलकर सेल व एडवांस्ड कॉम्पोनेंट्स भी यहीं बनाए जाएंगे। साथ ही कंपनी भारत में एक अनुसंधान केंद्र भी बनाएगी, जहाँ बैटरी तकनीक, रिसाइक्लिंग और थर्मल मैनेजमेंट पर काम होगा।
अशोक लेलैंड के सीईओ व प्रबंध निदेशक शेनू अग्रवाल का कहना है कि भारत ईवी की बढ़ती माँग का इंतज़ार नहीं कर सकता।
“हमें अभी से कदम उठाने होंगे और देश में ही नई तकनीक व कौशल विकसित करने होंगे,” उन्होंने कहा।
स्थानीय स्तर पर बैटरी बनाने से लागत घटेगी, विदेशी सप्लाई चेन के ख़तरों से बचाव होगा और भारत को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
अशोक लेलैंड पहले ही कई इलेक्ट्रिक ट्रक लॉन्च कर चुका है। इनका इस्तेमाल खनन, बंदरगाह और सीमेंट उद्योग में किया जा रहा है। पहाड़ी रास्तों पर ये और भी किफ़ायती साबित होते हैं क्योंकि रीजेनेरेटिव ब्रेकिंग तकनीक से ऊर्जा की बचत होती है और खर्च घटता है।
बड़े ग्राहक भी रुचि दिखा रहे हैं। उदाहरण के लिए, अदाणी ग्रुप तकरीबन 2,000 इलेक्ट्रिक ट्रक खरीदने की तैयारी कर रहा है।
भले ही अभी भारत में कुल व्यवसाय वाहनों में ईवी की हिस्सेदारी 1% से भी कम है, लेकिन अशोक लेलैंड का मानना है कि आने वाले समय में माँग तेज़ी से बढ़ेगी। मुख्य कारण है – 50–60% कम परिचालन खर्च, जो इन्हें डीज़ल ट्रकों की तुलना में काफ़ी सस्ता बनाता है।
अशोक लेलैंड बड़े निवेश में जल्दबाज़ी नहीं कर रहा है। वह एक चरणबद्ध रणनीति अपना रहा है:
इस तरह कंपनी लचीली रह पाएगी और तकनीक बदलने पर खुद को ढाल सकेगी।
ईवी के साथ-साथ अशोक लेलैंड एलएनजी और हाइड्रोजन ट्रक पर भी काम कर रहा है। कंपनी का कहना है कि 2–3 साल में हाइड्रोजन ट्रक भी सड़क पर उतरेंगे। ये ईवी के साथ मिलकर ग्राहकों को स्वच्छ विकल्प देंगे।
अशोक लेलैंड सिर्फ भारत पर ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य बाज़ारों पर भी ध्यान दे रहा है। उसका मानना है कि जीसीसी, अफ्रीका, सार्क और आसियान देश यूरोप और यूके से पहले ईवी और नई ऊर्जा तकनीकों को अपनाएँगे। कंपनी इस मौके का फायदा उठाना चाहती है।
भारत में बैटरी और दूसरे पुर्ज़े बनाकर अशोक लेलैंड आयात और लागत दोनों घटा रहा है। इससे न केवल ईवी की कीमतें कम होंगी, बल्कि कंपनी को वैश्विक सप्लाई चेन की अनिश्चितताओं से भी सुरक्षा मिलेगी। यह कदम भारत को आत्मनिर्भर और टिकाऊ परिवहन की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद करेगा।
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