ऑटो उद्योग हमेशा उतार-चढ़ाव से भरा रहता है। कभी अचानक मांग बढ़ जाती है और कभी बिना चेतावनी के गिर जाती है। ऊपर से सप्लाई चेन की दिक्कतें, तो कंपनियों के लिए सही योजना बनाना मुश्किल हो जाता है।
इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए टाटा मोटर्स ने अपने व्यवसाय वाहन (सीवी) डिवीजन में एक नया सिस्टम शुरू किया है। यह सिस्टम डाटा और विस्तृत फोरकास्टिंग पर आधारित है। इसका मकसद है—योजना को ज्यादा सटीक बनाना, अनुमान लगाने की आदत कम करना और कंपनी व डीलरों दोनों को ज्यादा स्पष्टता देना।
पहले ज़्यादातर कंपनियां, जिनमें टाटा मोटर्स भी शामिल है, मांग का अनुमान सिर्फ बड़े ट्रेंड्स देखकर लगाती थीं। यह तरीका कभी-कभी सही साबित होता था, लेकिन हर बार भरोसेमंद नहीं था। अचानक मांग बदलने पर डीलरों के पास या तो गाड़ियाँ ज़रूरत से ज़्यादा होती थीं या बहुत कम।
अनिल शेखर, हेड ऑफ सेल्सफोर्स एक्सीलेंस, व्यवसाय वाहन डिवीजन, टाटा मोटर्स, ने बताया कि कंपनी अब डेटा में और गहराई तक जाना चाहती थी। उन्होंने दिल्ली में हुए 7वें ऑटो रिटेल कॉन्क्लेव में कहा—“अब हम तकनीक और डेटा का इस्तेमाल करके मांग को बहुत बारीकी से समझते हैं।”
इस सिस्टम में डीलरों की भूमिका और भी बढ़ा दी गई है।
इस तरह अब फोरकास्टिंग सिर्फ अंदाज़े पर नहीं, बल्कि वास्तविक डेटा और डीलरों के अनुभव पर आधारित होती है।
पहले कई ऑटो कंपनियाँ ज़रूरत से ज़्यादा गाड़ियाँ डीलरों को भेज देती थीं और उम्मीद करती थीं कि धीरे-धीरे बिक जाएंगी। इससे डीलरों पर अतिरिक्त स्टॉक का बोझ बढ़ता था।
अब टाटा मोटर्स का नया सिस्टम मांग और सप्लाई को बेहतर तरीके से जोड़ने पर ध्यान दे रहा है। इससे ये फायदे होंगे—
यह नया तरीका अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन टाटा मोटर्स को भरोसा है कि इससे डीलरों की फोरकास्टिंग, वास्तविक मांग और गाड़ियों की बिक्री के बीच मजबूत रिश्ता बनेगा।
सरल भाषा में कहें तो कंपनी अब वही गाड़ियाँ बनाएगी जो लोग वास्तव में चाहते हैं और सही समय पर उपलब्ध होंगी। इससे योजना बेहतर बनेगी, कामकाज सुचारू रहेगा और इन्वेंट्री मैनेजमेंट अधिक प्रभावी होगा।
टाटा मोटर्स का यह कदम सिर्फ कंपनी के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे ऑटो उद्योग के लिए एक सबक हो सकता है। जब बाज़ार इतना अनिश्चित है, तो डाटा-आधारित और बारीक फोरकास्टिंग ही आगे का रास्ता है।
तकनीक, डीलर की राय और वास्तविक डेटा को मिलाकर टाटा मोटर्स दिखा रही है कि अनुमान लगाना अब सिर्फ किस्मत का खेल नहीं, बल्कि एक विज्ञान बन सकता है।
टाटा मोटर्स का यह नया सिस्टम ग्रैन्युलैरिटी यानी मांग को सबसे छोटे स्तर पर समझने पर केंद्रित है। अनुमान और मोटे हिसाब से हटकर अब यह पूरा तरीका डाटा-आधारित फैसलों पर आधारित है।
अगर यह मॉडल सफल होता है, तो आने वाले समय में अन्य ऑटो कंपनियाँ भी इसे अपनाकर अनिश्चित परिस्थितियों में भी मजबूती से खड़ी रह सकती हैं।
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