सड़क परिवहन में व्यवसाय वाहन देश के व्यापार और आपूर्ति व्यवस्था की रीढ़ हैं। ये रोज़ाना टनों माल ढोते हैं और कारखानों को बाज़ारों से जोड़ते हैं। लेकिन एक छिपा हुआ खतरा धीरे-धीरे वाहन की सेहत, सड़क सुरक्षा और मुनाफे को नुकसान पहुँचाता है, ओवरलोडिंग।
कई लोगों को यह ज़्यादा कमाई का आसान तरीका लगता है, लेकिन सच में यह वाहन को तेज़ी से खराब करता है, सड़क पर खतरा बढ़ाता है और भारी जुर्माने की वजह बनता है।
हर वाहन की एक तय सीमा होती है, जिसे उसका कुल वाहन भार सीमा कहा जाता है। यह सीमा इंजीनियर चेसिस, सस्पेंशन, टायर, ब्रेक और इंजन की क्षमता को ध्यान में रखकर तय करते हैं।
अगर कोई ट्रक 16 टन तक का भार उठाने के लिए बना है और उससे 20 टन उठवाया जाए, तो उसके सभी हिस्सों पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव पड़ता है। इससे पुर्ज़ों की उम्र घटती है और दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है।
ओवरलोडिंग से होने वाला नुकसान तुरंत नहीं दिखता, लेकिन समय के साथ यह बार-बार की मरम्मत, ज़्यादा खर्च और कम बिक्री कीमत के रूप में सामने आता है। इसके मुख्य प्रभाव हैं —
ये खतरे चालक, दूसरे वाहन चालकों और माल — सभी के लिए होते हैं।
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में व्यवसाय वाहनों के लिए तय भार सीमा है। नियम तोड़ने पर सख़्त कार्रवाई होती है —
कई लोग सोचते हैं कि ज़्यादा भार से एक ही चक्कर में ज़्यादा कमाई होगी, लेकिन असलियत में नुकसान ज़्यादा होता है —
ओवरलोडिंग केवल ट्रैफिक नियम का उल्लंघन नहीं है, बल्कि यह वाहन को जल्दी खराब करने, सड़क पर जान का खतरा बढ़ाने और आर्थिक नुकसान का रास्ता है। तय भार सीमा में काम करना वाहन की सेहत, सड़क सुरक्षा और व्यवसाय के मुनाफे, तीनों के लिए सही है।
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