डीजल ट्रक देशभर में सामान ले जाते हैं। लगभग सभी ट्रक जो आप शहरों, हाईवे या गाँवों में देखते हैं, वो डीजल पर चलते हैं। डीजल क्यों? क्योंकि यह भारी सामान लंबे रास्ते तक ले जाने में शक्ति और दक्षता दोनों देता है। लेकिन हाल ही में हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक लोकप्रिय हो रहे हैं। ये साफ-सुथरा विकल्प हैं और उच्च दक्षता व लंबी दूरी तय करने की क्षमता देते हैं।
इस लेख में हम हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रकों के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि क्यों डीजल का युग जल्दी खत्म हो सकता है।
हाइड्रोजन फ्यूल सेल बिजली बनाता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रोजन को हवा के ऑक्सीजन के साथ मिलाया जाता है। यह प्रतिक्रिया ट्रक के इलेक्ट्रिक मोटर को चलाती है और केवल पानी ही निकास के रूप में आता है।
एक और तरीका है हाइड्रोजन दहन इंजन का। यह इंजन हाइड्रोजन को सीधे जलाता है, जैसे डीजल इंजन डीजल जलाता है। दोनों तकनीकें पारंपरिक डीजल इंजनों से अधिक दक्ष हैं।
आपके पास दो साफ तकनीक विकल्प हैं: बैटरी इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन।
व्यवसाय वाहन बनाने वाली कंपनियां हाइड्रोजन ट्रक विकसित कर रही हैं। यह तकनीक लंबी दूरी के लिए अच्छी है और बड़े पैमाने पर किफायती भी है। भारत में 85 प्रतिशत से ज्यादा सामान ट्रक से ही जाता है।
वैश्विक कंपनियां जैसे डेमलर, वोल्वो और हुंडई हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक पर काम कर रही हैं, और भारतीय कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स और अशोक लेलैंड भी पीछे नहीं हैं। अशोक लेलैंड 2027 तक हाइड्रोजन ट्रक बेचने की योजना बना रही है। भारी ट्रांसपोर्ट के लिए उद्योग इस तकनीक की ओर बढ़ रहा है।
हाइड्रोजन ट्रक चलाने की क्षमता रिफ्यूलिंग स्टेशनों पर निर्भर करती है। 45 से अधिक देशों की राष्ट्रीय हाइड्रोजन रणनीति है।
भारत सरकार हाइड्रोजन वाहनों को अपनाने का समर्थन कर रही है। हाइड्रोजन वाहनों पर जीएसटी 5 प्रतिशत कर दिया गया है। यह दर इलेक्ट्रिक वाहनों के बराबर है। सरकार ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन शुरू किया है, जिसका बजट लगभग ₹20,000 करोड़ है। मिशन का लक्ष्य 2030 तक हर साल 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करना है। सरकार ने पांच पायलट परियोजनाएं मंजूर की हैं। इन परियोजनाओं के तहत भारत में 37 हाइड्रोजन वाहन और 9 नए रिफ्यूल स्टेशन लगाए जाएंगे।