भारत ने हल्के व्यवसायिक वाहन, मध्यम व्यवसायिक वाहन और भारी वाहन के लिए नये ईंधन दक्षता नियमों का मसौदा जारी किया है। ऊर्जा दक्षता ब्यूरो ने 28 अगस्त तक जनता से सुझाव मांगे हैं। इसका उद्देश्य मालवाहन से निकलने वाले प्रदूषण को कम करना और साफ-सुथरे व्यवसायिक ट्रकों को बढ़ावा देना है।
साल 2019 में परिवहन क्षेत्र से करीब 300 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड निकली थी। अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए तो 2050 तक यह उत्सर्जन बढ़कर 1200 मिलियन टन तक पहुंच सकता है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा ट्रक और अन्य व्यवसायिक वाहनों का है।
पहली बार 3.5 टन तक के हल्के व्यवसायिक वाहन भी इन नियमों में शामिल किए गए हैं। ये वाहन शहरों में सामान डिलीवरी और छोटे कारोबार के लिए इस्तेमाल होते हैं। अब तक इन पर कोई निगरानी नहीं थी, लेकिन नये नियमों से यह कमी पूरी होगी।
इन नियमों का दायरा ईंधन तक भी बढ़ाया गया है। अब यह डीजल, पेट्रोल, सीएनजी, हाइब्रिड, बिजली से चलने वाले ट्रक और हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहनों पर भी लागू होंगे। बैटरी से चलने वाले बिजली वाले वाहन शून्य उत्सर्जन माने जाएंगे, जिससे उन्हें इस नये सिस्टम में फायदा मिलेगा।
भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदता है। इसमें से लगभग आधा हिस्सा परिवहन में लगता है। भारी वाहन और मध्यम व्यवसायिक वाहन इसका बड़ा हिस्सा खा जाते हैं। नये नियमों से ईंधन की खपत कम होगी, आयात पर खर्च घटेगा और देश की अर्थव्यवस्था तेल के दामों के उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रहेगी। गाड़ियों के मालिकों को भी ईंधन पर कम खर्च करना होगा।
नये प्रस्ताव में कड़े लक्ष्य रखे गए हैं। साल 2027 से 2032 तक हल्के व्यवसायिक वाहन को एमआईडीसी (MIDC) चक्र में 115 ग्राम/किलोमीटर और डब्ल्यूएलटीसी (WLTC) चक्र में 133.4 ग्राम/किलोमीटर से कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करना होगा। डब्ल्यूएलटीपी मानक दुनिया के बेहतरीन मानकों में गिने जाते हैं और असल जिंदगी के नतीजों को बेहतर तरीके से दिखाते हैं।
नये नियमों में उन्नत तकनीक को प्रोत्साहन दिया जाएगा। बैटरी से चलने वाले वाहन, प्लग-इन हाइब्रिड, मजबूत हाइब्रिड और हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रक को अतिरिक्त अंक (क्रेडिट) दिए जाएंगे। इन अंकों से कंपनियों को अपने औसत लक्ष्य पूरे करने में मदद मिलेगी और उन्हें नये वाहन बनाने में निवेश का प्रोत्साहन मिलेगा।
अच्छे नियम तभी असर दिखाते हैं जब उनका पालन सख्ती से हो। इसके लिए सही आंकड़े, खुली जांच और आईसीएटी तथा एआरएआई जैसी संस्थाओं की निगरानी जरूरी होगी। साथ ही असली हालात के हिसाब से नियमों को समय-समय पर सुधारना भी होगा।
वाहन मालिकों को भी यह समझना होगा कि नये, ज्यादा दक्ष ट्रक ईंधन की बचत और उत्सर्जन दोनों में कमी लाते हैं। इसके साथ ही चार्जिंग नेटवर्क, हाइड्रोजन स्टेशन और मालवाहन गलियारों पर निवेश करना भी जरूरी है, ताकि नयी तकनीक आसानी से अपनाई जा सके।
दुनिया का अनुभव बताता है कि इस तरह के नियम नवाचार को बढ़ावा देते हैं और उद्योग की प्रगति भी नहीं रुकती। अमेरिका और यूरोप में व्यवसायिक ट्रकों के लिए ईंधन दक्षता नियमों ने यही साबित किया है। अनुमान है कि भारत 2050 तक इन नियमों से 1 बिलियन टन से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन रोक सकता है और अरबों लीटर डीजल की बचत कर सकता है।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो का यह मसौदा भारत के ट्रक उद्योग को ज्यादा टिकाऊ बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया तो भारतीय व्यवसायिक ट्रक उद्योग को कार्बन-मुक्त बनाने की राह मिल जाएगी।
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