सरकार ने टायर पर लगने वाला वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कम कर दिया है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) ने इस कदम की सराहना की। संगठन का कहना है कि कम कर से गाड़ियों के मालिकों पर खर्च कम होगा और सड़क सुरक्षा बेहतर होगी।
पहले टायर को जीएसटी की सबसे ऊँची 28 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया था। इस श्रेणी में विलासिता की वस्तुएँ भी शामिल थीं। एटीएमए ने इसे गलत बताया क्योंकि टायर कोई विलासिता नहीं बल्कि ज़रूरी वस्तु है। नए दर से यह गलती सुधर गई है।
एटीएमए के अध्यक्ष अरुण मम्मेन ने कहा कि किसान, छोटे व्यापारी, परिवहनकर्ता और रोज़ाना वाहन चलाने वाले लोग सभी को लाभ होगा। कम कीमत का मतलब कम संचालन खर्च है। यह बदलाव लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को भी मज़बूती देगा।
हर वाहन की चाल टायर पर ही निर्भर करती है। ट्रक, बस, ट्रैक्टर और यहाँ तक कि खनन मशीनों के लिए भी टायर ज़रूरी हैं। एटीएमए ने बताया कि टायर कोई ऐच्छिक हिस्सा नहीं बल्कि सुरक्षित और कुशल परिवहन का मूल आधार हैं।
उच्च कीमतों की वजह से कई बार वाहन मालिक टायर बदलने में देर कर देते थे और घिसे हुए टायर लंबे समय तक इस्तेमाल होते रहते थे। इससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता था। अब कीमत घटने से टायर समय पर बदले जा सकेंगे और सड़कें ज़्यादा सुरक्षित होंगी।
परिवहन खर्च पूरे आपूर्ति तंत्र को प्रभावित करता है। सस्ते टायर से यह खर्च घटेगा। व्यापारी, कारोबारी और उपभोक्ता सभी को राहत मिलेगी। इससे लॉजिस्टिक्स नेटवर्क और मजबूत होगा।
ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन का कहना है कि यह सुधार उद्योग और उपभोक्ता दोनों की ज़रूरतों का संतुलन बनाता है। सस्ते टायर से समय पर देखभाल हो सकेगी, जिससे सुरक्षा मानक बढ़ेंगे और भारत के परिवहन तंत्र की कार्यकुशलता बेहतर होगी।
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