यूरोप का व्यवसायिक परिवहन क्षेत्र इस समय बड़े बदलाव से गुजर रहा है। पहले इलेक्ट्रिक ट्रक को प्रयोग के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब यह टिकाऊ माल ढुलाई (फ्रेट ट्रांसपोर्ट) पर चर्चा का मुख्य विषय बन चुका है। यूरोप के कई देशों की सरकारें अब सख्त प्रदूषण नियम लागू कर रही हैं और साथ ही इलेक्ट्रिक ट्रक अपनाने के लिए प्रोत्साहन भी दे रही हैं। इसका नतीजा यह है कि इलेक्ट्रिक ट्रकों की व्यवसायिक इंडस्ट्री बहुत तेज़ी से बढ़ रही है, जो लॉजिस्टिक्स, शहरी डिलीवरी और फ्लीट प्रबंधन के तरीकों को बदल रही है।
जर्मनी, नॉर्वे और नीदरलैंड में प्रमुख निर्माता अब पूरी तरह से इलेक्ट्रिक लंबे रास्ते (लॉन्ग हॉल) ट्रक बना रहे हैं, जो डीज़ल ट्रकों की बराबरी कर रहे हैं – चाहे वह दूरी हो या भार क्षमता। चार्जिंग की सुविधा, जो पहले बड़ी समस्या थी, अब तेज़ी से बढ़ रही है। बड़ी कंपनियाँ अब माल ढुलाई के मुख्य रास्तों पर फास्ट चार्जिंग नेटवर्क लगा रही हैं, जिससे ट्रकों का रुकने का समय बहुत कम हो गया है और मार्ग की कार्यक्षमता बढ़ गई है।
फ्लीट चलाने वाली कंपनियाँ कहती हैं कि इलेक्ट्रिक ट्रक अपनाने का सबसे बड़ा कारण परिचालन लागत (ऑपरेशनल कॉस्ट) कम होना है। भले ही इलेक्ट्रिक वाहन शुरू में महंगे हों, लेकिन ईंधन पर होने वाला खर्च बहुत कम है और रखरखाव की ज़रूरत भी कम होती है क्योंकि इनमें चलने वाले हिस्से कम होते हैं। इससे लाभ बढ़ जाता है। साथ ही, आधुनिक तकनीकें जैसे टेलीमैटिक्स और रूट ऑप्टिमाइज़ेशन सॉफ्टवेयर इन ट्रकों की ऊर्जा क्षमता और देखभाल को बेहतर बनाते हैं।
भारत के लिए यूरोप की यह स्थिति कई अहम सीख देती है। नीतिनिर्माताओं को चाहिए कि वे एक साथ प्रोत्साहन और चार्जिंग ढांचे के विकास पर ध्यान दें। भारतीय फ्लीट ऑपरेटर पहले शहरी और क्षेत्रीय स्तर पर इलेक्ट्रिक ट्रक अपनाने की शुरुआत कर सकते हैं, फिर धीरे-धीरे लंबी दूरी के उपयोग में जा सकते हैं। बैटरी की सप्लाई और देश में ही निर्माण सुविधाएँ भी बड़े स्तर पर इलेक्ट्रिक फ्लीट को सफल बनाने में मदद करेंगी।
यूरोप में कंपनियों ने एक और असरदार तरीका अपनाया है — वाहन निर्माता, लॉजिस्टिक्स कंपनियाँ और स्थानीय प्रशासन मिलकर काम कर रहे हैं। साझा चार्जिंग नेटवर्क, सरकारी-निजी साझेदारी और पायलट प्रोजेक्ट्स ने लागत घटाने और अपनाने की रफ्तार बढ़ाने में मदद की है। भारत भी ऐसे मॉडल अपना सकता है, पहले अधिक भीड़ वाले शहरी क्षेत्रों पर ध्यान देकर फिर पूरे देश में विस्तार कर सकता है।
यूरोप में इलेक्ट्रिक ट्रकों की बढ़ोतरी यह दिखाती है कि नियम, तकनीक और आर्थिक समझ एक साथ आकर कैसे उद्योग बदल सकते हैं। भारत की ट्रकिंग इंडस्ट्री के लिए यह सीख बहुत महत्वपूर्ण है। अगर भारत समय रहते कदम उठाए, ढांचा तैयार करे और मजबूत साझेदारियाँ बनाए, तो वह टिकाऊ और लाभदायक माल परिवहन की दिशा में आगे बढ़ सकता है।वाणिज्यिक गाड़ियों और ऑटोमोबाइल से जुड़ी नई जानकारियों के लिए 91ट्रक्स के साथ जुड़े रहें। हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें और फेसबुक, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन पर हमें फॉलो करें, ताकि आपको ताज़ा वीडियो, खबरें और ट्रेंड्स मिलते रहें।
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