ट्रक ड्राइवरों का मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा – एक अनदेखा संकटट्रक ड्राइवरों का मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा – एक अनदेखा संकट

19 Jun 2025

ट्रक ड्राइवरों का मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा – एक अनदेखा संकट

जानिए क्यों ट्रक ड्राइवरों का मानसिक स्वास्थ्य भारत के कमर्शियल व्हीकल सेक्टर में एक बड़ी चिंता बन गया है और इसे सुधारने के उपाय क्या हैं।

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JS

By Jyoti

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हम उन्हें हर दिन सड़कों पर देखते हैं — गर्मी में, बारिश में, रातों में — ट्रक ड्राइवर हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। अगर ये लोग न हों, तो सामान रुक जाए, बाजार खाली हो जाएं और फैक्ट्रियाँ बंद पड़ जाएँ। लेकिन जब कॉमर्शियल ट्रक चलते रहते हैं, तो इन ट्रकों को चलाने वाले इंसानों का क्या होता है?

जब हम कॉमर्शियल व्हीकल्स की बात करते हैं, तो माइलेज, इंजन या टैक्स की चर्चा होती है। लेकिन उस इंसान की, जो दिन-रात ट्रक चला रहा है — उसकी सेहत और मानसिक स्थिति के बारे में बात बहुत कम होती है।


लंबा सफर, भारी मन

ट्रक ड्राइवर कई-कई घंटे, और कभी-कभी कई दिन तक सड़क पर रहते हैं — अकेले। परिवार से दूर। आराम से दूर। ये जीवनशैली धीरे-धीरे तनाव, थकान और अकेलेपन को जन्म देती है।

  • एक तंग केबिन में 10–14 घंटे तक बैठना।
  • ढाबों का बासी और अनहेल्दी खाना।
  • कभी ट्रक में, कभी सड़क किनारे सोना।

इन हालातों में डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी जैसे लक्षण आना आम बात है, लेकिन ज़्यादातर ड्राइवर इन बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं — शर्म, डर या जागरूकता की कमी के कारण।


सुरक्षा सिर्फ तकनीकी नहीं होती

जब हम कॉमर्शियल व्हीकल सेफ्टी की बात करते हैं, तो ब्रेक, सीट बेल्ट और टायर की स्थिति को देखते हैं। लेकिन एक थका हुआ या परेशान ड्राइवर भी उतना ही बड़ा खतरा है।

  • थकान से फोकस कम होता है।
  • तनाव से फैसले लेने की क्षमता घटती है।
  • भावनात्मक दबाव में गलत निर्णय हो सकते हैं।

रोड एक्सीडेंट्स के आंकड़ों के अनुसार, कई कॉमर्शियल ट्रकों के हादसे तकनीकी खराबी से नहीं, बल्कि ड्राइवर की थकान या डिस्ट्रैक्शन से होते हैं।


मानसिक स्वास्थ्य पर चुप्पी क्यों?

भारत में अधिकतर ट्रक ड्राइवर ग्रामीण इलाकों से आते हैं। वहां मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात नहीं होती। लोग इसे “शहरों की बीमारी” मानते हैं या कमजोरी समझते हैं। साथ ही:

  • न कोई हेल्पलाइन है,
  • न नियमित हेल्थ चेकअप,
  • न ट्रांसपोर्ट हब्स पर काउंसलिंग।

ड्राइवर अपनी परेशानियों से अकेले जूझता है।


छोटे कदम, बड़ा असर

कुछ आसान उपाय इस स्थिति को बदल सकते हैं:

  • लंबे सफर में अनिवार्य विश्राम।
  • प्रमुख ट्रांसपोर्ट हब्स पर वेलनेस कैंप।
  • हेल्पलाइन नंबर और ड्राइवर सपोर्ट ग्रुप्स।
  • हेल्थ इंश्योरेंस, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल हो।
  • कैबिन सुधार — अच्छी वेंटिलेशन, आरामदायक सीट, सोने की बेहतर जगह।

फ्लीट ओनर्स, ट्रांसपोर्ट कंपनियां और यहां तक कि कॉमर्शियल व्हीकल निर्माता भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं।


निष्कर्ष

ट्रक ड्राइवर सिर्फ सामान नहीं, बल्कि देश की उम्मीदें और ज़रूरतें लेकर चलते हैं। लेकिन उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत को हमने वर्षों तक नजरअंदाज किया है।

अब वक्त है उन्हें सिर्फ एक "ड्राइवर" नहीं, बल्कि एक इंसान समझने का — जिसकी भावनाएं हैं, जिम्मेदारियाँ हैं, और एक परिवार है जो उसके सही सलामत लौटने का इंतजार करता है।

हमने सड़कों को बेहतर बनाया, ट्रकों को बेहतर बनाया। अब ड्राइवर की जिंदगी को भी बेहतर बनाना होगा।

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