भारत में जब से व्यवसायों ने अपने कामकाज को और किफ़ायती और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की कोशिशें शुरू की हैं, एक बड़ा सवाल सामने आता है – क्या ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) लेना बेहतर होगा या डीज़ल वाहन पर भरोसा बनाए रखें?
शुरू में तो ये फ़ैसला सिर्फ़ क़ीमत देखकर आसान लग सकता है, लेकिन जब हम असली खर्चों को गहराई से देखते हैं, तो तस्वीर कुछ और ही सामने आती है। चलिए, समझते हैं व्यवसाय ईवी और व्यवसाय डीज़ल वाहन चलाने के असली खर्चों को।
1. शुरुआती निवेश: सिर्फ़ क़ीमत ही सब कुछ नहीं
व्यवसाय ईवी की शुरुआती क़ीमत ज़्यादा होती है। इसकी सबसे महंगी चीज़ होती है बैटरी। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाएँ जैसे फ़ेम 2 इस खर्च को कम करने में मदद करती हैं।
वहीं, डीज़ल वाहन की क़ीमत कम होती है और बाज़ार में आसानी से उपलब्ध भी हैं। इसलिए बहुत से व्यवसाय इन्हें जल्दी और बिना ज़्यादा सोच-विचार के ले लेते हैं। लेकिन बाद में इन पर आने वाला खर्च धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है।
2. ईंधन और बिजली का खर्च: ज़मीन-आसमान का फ़र्क
सबसे ज़्यादा खर्च वाहन में आता है ईंधन का। डीज़ल की क़ीमत हमेशा बदलती रहती है और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव का सीधा असर आपकी जेब पर पड़ता है।
वहीं, ईवी को चार्ज करने में खर्च बहुत कम आता है। भारत में अलग-अलग जगहों पर इसे चलाने का खर्च लगभग ₹1 से ₹2 प्रति किलोमीटर आता है। जबकि डीज़ल वाहन का यही खर्च ₹5 से ₹7 प्रति किलोमीटर तक हो सकता है।
अगर आप सालों तक गाड़ी चलाते हैं, तो ये फ़र्क लाखों रुपये का हो जाता है।
3. रख-रखाव: आसान बनावट, कम खर्च
ईवी में डीज़ल इंजन की तरह ज़्यादा पुर्जे नहीं होते – ना तेल फ़िल्टर, ना क्लच प्लेट, ना टाइमिंग बेल्ट। मतलब, कम खराबी और कम बार सर्विस सेंटर जाना।
वहीं, डीज़ल वाहन में ज़्यादा रख-रखाव की ज़रूरत पड़ती है। ज़्यादा चलने पर पार्ट्स जल्दी खराब होते हैं और उत्सर्जन की जांच भी होती रहती है। इन सबका जोड़ मिलाकर खर्च बहुत बढ़ जाता है।
4. बैटरी की उम्र बनाम इंजन की लंबी चलने की क्षमता
ईवी की बैटरी आमतौर पर 5 से 7 साल चलती है और बदलवाना महंगा पड़ सकता है, हालांकि नई तकनीक से इसकी क़ीमतें धीरे-धीरे घट रही हैं।
वहीं, डीज़ल इंजन अगर ठीक से चलाया जाए, तो 10 साल से ज़्यादा भी चल सकता है। लेकिन इस दौरान लगातार सर्विसिंग और पार्ट्स बदलने का खर्च आता ही रहता है।
तो कौन सा बेहतर है? अगर आप रोज़ाना बहुत ज़्यादा किलोमीटर चलाते हैं, तो ईवी सस्ता साबित होगा। लेकिन कम चलने वाले व्यवसायों के लिए डीज़ल अभी भी बेहतर विकल्प हो सकता है।
5. नियम और पर्यावरण से जुड़ा खर्च
अब सरकारें डीज़ल वाहनों पर कड़ी पाबंदियाँ लगाने लगी हैं। जैसे दिल्ली में पुराने डीज़ल वाहनों पर बैन और कड़े उत्सर्जन नियम।
ईवी में ऐसा कोई झंझट नहीं है – ना हरे टैक्स का डर, ना उत्सर्जन जुर्माना। साथ ही आपका व्यवसाय पर्यावरण की भी मदद करता है, जिससे आपकी छवि भी सुधरती है।
6. पुरानी गाड़ी बेचने पर मिलने वाली क़ीमत
डीज़ल वाहन की दोबारा बिक्री का बाज़ार पहले से बना हुआ है। लेकिन आने वाले वर्षों में इनकी मांग कम हो सकती है क्योंकि डीज़ल पर पाबंदियाँ बढ़ रही हैं।
ईवी का सेकंड हैंड बाज़ार अभी नया है, लेकिन जैसे-जैसे लोग इन्हें ज़्यादा अपनाएंगे और बैटरी की तकनीक बेहतर होगी, इनकी बिक्री क़ीमत भी सुधरेगी।
निष्कर्ष: आपकी ज़रूरत ही तय करेगी सही रास्ता
कोई एक जवाब सबके लिए सही नहीं हो सकता। अगर आपका व्यवसाय रोज़ तय रास्तों और शहर के अंदरूनी इलाकों में ही चलता है, तो व्यवसाय ईवी आपके लिए लंबे समय में बेहद फ़ायदेमंद साबित हो सकता है।
लेकिन अगर आपका काम लंबी दूरी, ज़्यादा लोड या अनिश्चित समय पर निर्भर है और चार्जिंग की सुविधा कम है, तो फिलहाल व्यवसाय डीज़ल वाहन ही ज़्यादा व्यावहारिक है।
अंत में, ये सिर्फ़ तकनीक की बात नहीं है – ये बात है आपके व्यवसाय के हाल और भविष्य की। सोच-समझ कर फ़ैसला करें, ताकि आपकी गाड़ी ही नहीं, आपका काम भी आगे बढ़े।
अधिक लेख और समाचारों के लिए, 91ट्रक्स के साथ अपडेट रहें। हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें और ऑटोमोबाइल जगत के नवीनतम वीडियो और अपडेट के लिए हमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, और लिंक्डइन पर फॉलो करें!
91ट्रक्स एक तेजी से बढ़ता डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो वाणिज्यिक वाहन उद्योग से संबंधित नवीनतम अपडेट और जानकारी प्रदान करता है।