11 जुलाई 2025 को भारी उद्योग मंत्रालय ने पीएम ई-ड्राइव योजना के अंतर्गत नई सब्सिडी दिशानिर्देश जारी किए। पहली बार, इलेक्ट्रिक ट्रकों (ई-ट्रक) को राष्ट्रीय स्तर पर विशेष प्रोत्साहन मिला। यह भारत की परिवहन और जलवायु नीति में एक बड़ा बदलाव है।
इस योजना के लिए ₹500 करोड़ का बजट रखा गया है, जिसका लक्ष्य 5,500 ई-ट्रक हैं। इसका उद्देश्य माल ढुलाई में होने वाले प्रदूषण को कम करना, वायु की गुणवत्ता सुधारना और देश में निर्माण को बढ़ावा देना है। यह नीति उस क्षेत्र को समर्थन देती है जो भारत के 70% सामान की ढुलाई करता है, पर आज भी महंगे ईंधन और प्रदूषण से जूझ रहा है।
ई-ट्रक से निकलने वाला प्रदूषण शून्य होता है। बंदरगाहों, गोदामों और औद्योगिक क्षेत्रों जैसे माल ढुलाई क्षेत्रों में इनका उपयोग स्थानीय वायु प्रदूषण को काफी हद तक घटा सकता है। इससे खासकर उन इलाकों में रहने वालों की सेहत बेहतर होगी जो इन केंद्रों के पास रहते हैं।
आज भी, जब बिजली का अधिकांश हिस्सा कोयले से बनता है, तब भी ई-ट्रक डीज़ल ट्रकों की तुलना में 17% से 37% तक ग्रीनहाउस गैसों को कम करते हैं। यदि नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग किया जाए तो यह कमी 85% से 88% तक पहुंच सकती है। यह कटौती 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य पाने के लिए बहुत जरूरी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों पर कायम रहना है तो उसे 2050 तक 100% शून्य-उत्सर्जन ट्रक बेचने होंगे।
डीज़ल ट्रक खरीदने में सस्ते होते हैं लेकिन चलाने और मेंटेन करने में महंगे पड़ते हैं। ई-ट्रक की कीमत 2 से 3.5 गुना ज़्यादा होती है, लेकिन इन्हें चलाने और रखरखाव का खर्च कम होता है। इस कारण कुल स्वामित्व लागत (टीसीओ) डीज़ल ट्रकों से बस 1.2 से 1.5 गुना होती है।
अब पीएम ई-ड्राइव की सब्सिडी से ट्रक मालिकों को और राहत मिलेगी। इस योजना के तहत ₹5,000 प्रति किलोवॉट घंटे की दर से सब्सिडी दी जाएगी, जो ट्रक के वजन के अनुसार ₹2.7 लाख से ₹9.6 लाख तक हो सकती है। इससे ई-ट्रक अपनाना पहले से आसान होगा।
कुछ कंपनियाँ जैसे जेके लक्ष्मी सीमेंट, अल्ट्राटेक, जेएसडब्ल्यू सीमेंट, टाटा स्टील और जेएनपीटी पहले ही बंद रूटों पर ई-ट्रक का परीक्षण कर रही हैं। यदि चार्जिंग व्यवस्था सही से बनती है तो यह प्रयोग साबित करेंगे कि ई-ट्रक आर्थिक और व्यावसायिक दोनों दृष्टि से सफल हो सकते हैं।
जो कंपनियाँ सब्सिडी चाहती हैं, उन्हें चरणबद्ध निर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) की शर्तों को मानना होगा। इसके तहत बैटरी, बीएमएस, मोटर, एचवीएसी सिस्टम और कंट्रोलर जैसे प्रमुख पुर्जों का देश में निर्माण करना होगा।
यह शर्त भारत की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं (पीएलआई) के साथ मेल खाती है। ये नीति देश के नवाचार, आपूर्ति श्रृंखला और ई-ट्रक उद्योग को मजबूत करेंगी।
भारत पहले से ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ट्रकिंग बाजार है और ट्रक निर्यात में सातवें स्थान पर है। अभी निवेश करने से भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा, कुशल नौकरियाँ और दीर्घकालिक लाभ मिल सकता है क्योंकि पूरी दुनिया माल ढुलाई को इलेक्ट्रिक बना रही है।
भारत में लॉजिस्टिक्स का खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 14% है, जो वैश्विक औसत से काफी ज़्यादा है। इसमें डीज़ल का खर्च बड़ी भूमिका निभाता है। ई-ट्रक इस खर्च को कम करने और तेल पर निर्भरता घटाने का बेहतर तरीका हैं।
परिवहन भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 14% देता है, जिसमें मध्यम और भारी माल ट्रक (एमएचडीटी) का हिस्सा 40% है। इस हिस्से को इलेक्ट्रिक बनाना आर्थिक और पर्यावरणीय दोनों लाभ देगा।
अब तक फेम-I, फेम-II और जेएनएनयूआरएम जैसी योजनाएँ केवल बसों और सवारी वाहनों पर केंद्रित थीं। ई-ट्रक को नजरअंदाज किया गया था। पीएम ई-ड्राइव योजना अब इस खामी को पूरा करती है और माल ढुलाई को स्वच्छ बनाती है।
इस बदलाव को बड़े स्तर पर लाने के लिए भारत को चाहिए:
ये कदम ई-ट्रक अपनाने की गति तेज करेंगे और डीज़ल व इलेक्ट्रिक ट्रकों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करेंगे।
अब सवाल यह नहीं है कि माल ढुलाई इलेक्ट्रिक होगी या नहीं, बल्कि यह है कि कितनी तेजी से होगी। भारत के पास बाज़ार भी है, श्रमशक्ति भी, और अब नीति समर्थन भी। सही निवेश, उद्योग से साझेदारी और मज़बूत नीति-निर्देशन से भारत 21वीं सदी में टिकाऊ ट्रकिंग का उदाहरण बन सकता है।
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