भारत में डीज़ल ट्रकों की दुनिया बीएस6 फेज़ 2 एमिशन नॉर्म्स के आने के बाद बदल गई है। ये नियम अब और कड़े हैं, ज़्यादा साफ़-सुथरे हैं, और प्रदूषण को कम करने के लिए बनाए गए हैं। लेकिन इसके साथ कुछ हकीकत की चुनौतियाँ भी आती हैं, जिन्हें हर ट्रक मालिक को जानना चाहिए।
चलिए समझते हैं कि बीएस6 फेज़ 2 का असर ट्रक की मेंटेनेंस, परफॉर्मेंस और खर्चों पर कैसे पड़ता है।
बीएस6 फेज़ 2, बीएस6 एमिशन नॉर्म्स (भारत स्टेज 6) का दूसरा चरण है।
अब ट्रकों को रियल ड्राइविंग एमिशन को भी पास करना होता है। इसका मतलब है कि अब ट्रक को सिर्फ लैब में नहीं, बल्कि सड़कों पर भी कम प्रदूषण करना होगा।
मुख्य बदलाव:
ये पर्यावरण के लिए अच्छा है, लेकिन इसका मतलब बीएस6 ट्रक मेंटेनेंस में बदलाव भी है।
अब बीएस6 फेज़ 2 ट्रकों की सही और समय पर सर्विसिंग ज़रूरी हो गई है। अब छोटे-मोटे मुद्दों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
नए एमिशन कंट्रोल सिस्टम सेंसर पर आधारित हैं। अगर सेंसर खराब हुए या गंदे हो गए, तो फ्यूल एफिशिएंसी और एमिशन पर असर पड़ता है।
अब ट्रक में ECUs (इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल यूनिट्स) ज़्यादा होते हैं। इसलिए ट्रेंड मैकेनिक की ज़रूरत पड़ती है।
अब डीज़ल ट्रकों में डीईएफ (डीजल एग्ज़ॉस्ट फ्लूइड) और SCR (सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन) सिस्टम होते हैं।
घटिया क्वालिटी का DEF या खराब सिस्टम देखभाल से ब्रेकडाउन हो सकता है।
अब बीएस6 डीज़ल ट्रक की सर्विसिंग कुछ अलग है:
तो एमिशन कम हुआ है, लेकिन ट्रक सर्विस बीएस6 वाहनों की लागत और ज़िम्मेदारी थोड़ी बढ़ गई है।
इन अपग्रेड्स के साथ कुछ नई दिक्कतें भी आती हैं:
ये समस्याएं हल की जा सकती हैं, लेकिन नज़रअंदाज़ करने पर खर्च बढ़ सकता है।
बीएस6 फेज़ 2 का ट्रक मेंटेनेंस पर असर ज़रूर है – लेकिन डरने की बात नहीं।
अगर आप समय पर सर्विस कराएं, सही क्वालिटी का फ्यूल और डीईएफ इस्तेमाल करें, तो आपका ट्रक बेहतर माइलेज देगा, कम प्रदूषण करेगा, और ज़्यादा टिकेगा।
अपने ट्रक के बीएस6 एमिशन नॉर्म्स को समझना सिर्फ नियम मानना नहीं, बल्कि बेहतर प्रदर्शन और कम खर्च की कुंजी है।
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